कबीर की कविता, कबीर का दर्शन वैकल्पिक समाज का दर्श एवं सपना हमारे समक्ष प्रस्तुत करता है। कबीर की काव्यधारा मानवीय, श्रम-आधारित सभ्यता की नींव रखती है। कबीर की रचनाओं को आत्मसात कर हम उपभोक्तावादी संस्कृति तथा पूंजीवादी व्यवस्था का सामना कर सकते हैं। प्रतिष्ठित विद्वान तथा दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डा. गोपेश्वर सिंह ने ये उद्गार आज महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय के संत साहित्य शोध पीठ तथा हिन्दी विभाग द्वारा आयोजित- कबीर का वैचारिक दर्शन और उपभोक्ता संस्कृति विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी में व्यक्त किए।
प्रो. गोपेश्वर सिंह ने कहा कि कविता मनुष्य को सबसे अधिक संस्कारित करती है। कविता के संस्कारों का प्रभाव मनुष्य के अंत:करण पर होता है। प्रो. गोपेश्वर सिंह ने कहा कि गांधी जी का सामाजिक एवं आर्थिक दर्शन कबीर दर्शन को प्रतिबिंबित करता है। उन्होंने कहा कि भारत के सामाजिक-आर्थिक स्वावलंबन का सपना कबीर के चरखे से पूरा हो सकता है।
कबीर की कविता, कबीर का दर्शन
वैकल्पिक समाज का दर्श एवं सपना हमारे समक्ष प्रस्तुत करता है। कबीर की काव्यधारा
मानवीय, श्रम-आधारित
सभ्यता की नींव रखती है। कबीर की रचनाओं को आत्मसात कर हम उपभोक्तावादी संस्कृति
तथा पूंजीवादी व्यवस्था का सामना कर सकते हैं। प्रतिष्ठित विद्वान तथा दिल्ली
विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डा. गोपेश्वर सिंह ने ये उद्गार आज महर्षि दयानंद
विश्वविद्यालय के संत साहित्य शोध पीठ तथा हिन्दी विभाग द्वारा आयोजित- कबीर का
वैचारिक दर्शन और उपभोक्ता संस्कृति विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी में व्यक्त किए।
प्रो. गोपेश्वर सिंह ने कहा कि कविता मनुष्य को सबसे अधिक
संस्कारित करती है। कविता के संस्कारों का प्रभाव मनुष्य के अंत:करण पर होता है।
प्रो. गोपेश्वर सिंह ने कहा कि गांधी जी का सामाजिक एवं आर्थिक दर्शन कबीर दर्शन
को प्रतिबिंबित करता है। उन्होंने कहा कि भारत के सामाजिक-आर्थिक स्वावलंबन का
सपना कबीर के चरखे से पूरा हो सकता है।
कार्यक्रम के प्रारंभ में हिन्दी विभाग की प्रोफेसर तथा संत
साहित्य शोध पीठ की अध्यक्षा डा. रोहिणी अग्रवाल ने इस संगोष्ठी की विषय वस्तु पर
प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि उपभोक्तावादी संस्कृति मनुष्य और समाज रूपी विक्रम
के कंधों पर बेताल की तरह सवार है। ऐसे परिदृश्य में कबीर के रचना संसार का सार
तत्व इन उपभोक्तावादी प्रवृत्तियों से लोहा लेन का दर्शन हमारे सामने रखता है।
संगोष्ठी के पहले सत्र में दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दी
विभाग की प्राध्यापिका प्रो. सुधा सिंह ने कबीर के स्त्री पक्ष पर अपनी बात रखी।
उन्होंने कहा कि भक्ति काल की कविता में यौन शुचिता का सवाल महत्त्वपूर्ण नजर आता
है। उनका कहना था कि सामंती, पितृ सत्तात्मक समाज ने स्त्री के देह पर बंधन गढ़ थे। प्रो.
सुधा सिंह का कहना था कि यदि आप पितृ-सत्ता के विरोध में नहीं है तो फिर आप स्त्री
के पक्ष में नहीं है।
जामिया मिलिया इस्लामिया, नई दिल्ली के हिन्दी विभाग के प्रो.
हेमलता माहेश्वर ने कहा कि कबीर के प्रक्षालन की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि
बाबा साहेब डा. अंबेडकर ने भी संत कबीर को गौतम बुद्ध तथा ज्योतिबा फुले के
साथ-साथ अपना वैचारिक गुरू माना था। प्रो. हेमलता ने कहा की कबीर की कविता खुद से
संवाद भी है। कबीर की काव्यधारा स्वयं से आंखें मिलाकर आत्म निरीक्षण का साहस देती
है।
इस संगोष्ठी में प्रतिष्ठित सोशल एक्टीविस्ट तथा सेवानिवृत
प्राचार्या डा. संतोष मुदगिल ने कबीर के काव्य संसार से उपजे सवालों की वर्तमान
समय में प्रासंगिकता की चर्चा की। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय की सामाजिक
विसंगतियों से जूझने के लिए कबीर का दर्शन सहायक है। प्रतिष्ठित सोशल एक्टीविस्ट, चिंतक रमणीक
मोहन ने उपभोक्तावादी संस्कृति की दशा-दिशा पर फोकस करते हुए कबीर की सार्थकता को
रेखांकित किया। युवा स्कॉलर अमन वशिष्ठ ने हरियाणा प्रांत में कबीर पंथ की
ऐतिहासिक उपस्थिति तथा विरासत बारे बताया।
हिन्दी विभाग की अध्यक्षता प्रो. सुशीला ने कहा कि भक्ति काल के
प्रमुख स्वर संत कबीर की सर्वकालिक प्रासंगिकता है। विशेष तौर पर उपभोक्तावादी
संस्कृति के फैलाव को समझने के लिए कबीर का काव्य महत्त्वपूर्ण है। आभार प्रदर्शन
सहायक प्रोफेसर डा. अनिल कुमार ने किया। मंच संचालन डा. सतीश डांगी ने किया।
स्वरात सदन में आयोजित इस संगोष्ठी में अर्थशास्त्र विभाग की
प्रो. कविता चक्रवर्ती, अंग्रेजी विभाग की प्रो. रश्मि गठवाला, हिन्दी विभाग की
प्रो. माया मलिक, प्रो. संजीव कुमार, प्रो. पुष्पा, डा. कृष्णा देवी, डा. मंगल सेन
एवं दीन दयाल शोध पीठ के परामर्शदाता डा. पूर्णमल गौड़, विभिन्न संबद्ध
महाविद्यालयों तथा अन्य विश्वविद्यालयों के हिन्दी के प्राध्यापकगण, डेलीगेट्स, निदेशक जनसंपर्क
सुनित मुखर्जी, डा. श्रुति सुधा आर्य, शुभम मोंगा, हिन्दी विभाग के
विद्यार्थीगण उपस्थित रहे। इस संगोष्ठी में डेलीगेट्स ने शोध पत्र भी प्रस्तुत किए।
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