क्या आपको पता है भारत ने सियाचिन ग्लेशियर पर
कैसे कब्ज़ा किया था? (जंगली गुलाबों की जगह किसे कहाँ जाता
है ?)
'सियाचिन' शब्द का अर्थ है 'जंगली गुलाबों की जगह'.
बलती भाष में सिया, कुछ लोग इस नाम की वजह हिमालय की घाटियों में पाए जाने वाले जंगली
फूल को मानते हैं जबकि कुछ लोग इस नाम के लिए हिमालय की पहाड़ियों पर पाए जाने वाले
“कांटेदार
जंगली पौधों” को
मानते हैं.
सियाचिन ग्लेशियर कहाँ है?
यह पूरी दुनिया में सबसे
अधिक ऊँचा युद्ध स्थल के रूप में जाना जाता है. सियाचिन
ग्लेशियर; पूर्वी
कराकोरम / हिमालय,
में स्थित है. यह भारत-पाक नियंत्रण रेखा के पास लगभग
देशान्तर: 76.9°पूर्व, अक्षांश: 35.5° उत्तर पर स्थित
है. सियाचिन ग्लेशियर का क्षेत्रफल लगभग 78 किमी है.
सियाचिन विश्व का दूसरा सबसे बड़ा ग्लेशियर है.
भारत-पाक सियाचिन विवाद
सियाचिन समुद्र तल से 17770 फीट ( औसतन ) की ऊंचाई
पर स्थित ग्लेशियर के एक तरफ पाकिस्तान की सीमा और दूसरी तरफ चीन की
सीमा "अक्साई चीन" इस इलाके में है. 1984 से पहले यहाँ पर न तो भारत और न ही पाकिस्तान की सेना की उपस्थिति थी.
1972 में हुए शिमला समझौते में इस इलाके
को बेजान और बंजर करार दे दिया गया. परन्तु इस समझौते में दोनों देशों के
बीच सीमा का निर्धारण नही हो पाया. पर पाकिस्तान ने 1970 के दशक से ही
इस ग्लेशियर पर पर्वतारोहण अभियानों की अनुमति दे रखी थी जिससे इस बात की पुष्टि हो जा सके कि यहाँ पाकिस्तान का कब्ज़ा है. लेकिन यह चाल ज्यादा ना चल सकी|
1978 में यह बात खुल गयी. इसी वर्ष भारतीय सेना के कर्नल नरेंद्र कुमार ने काउंटर अटैक करते हुए तेराम कांगरी चोटियों के लिए एक सेना अभियान चलाया था.
1978 में यह बात खुल गयी. इसी वर्ष भारतीय सेना के कर्नल नरेंद्र कुमार ने काउंटर अटैक करते हुए तेराम कांगरी चोटियों के लिए एक सेना अभियान चलाया था.
फिर लगभग 6 साल बाद भारत को ख़ुफ़िया जानकारी
मिली कि पाकिस्तान सियाचिन ग्लेसियर पर कब्ज़ा करने के लिए लन्दन की किसी
कंपनी से “विशेष
प्रकार के “गर्म
सूट” बनवा
रहा है, लेकिन
भारत ने अपनी कुशलता और तत्परता के कारण यही विशेष सूट उनसे पहले बनवा
लिए. भारतीय सेना ने 13
अप्रैल 1984 को
ग्लेशियर पर कब्ज़ा करने की योजना बना ली.
इस अभियान का पहला चरण मार्च 1984 में ग्लेशियर
के पूर्वी बेस के लिए पैदल मार्च के साथ शुरू हुआ. कुमाऊं रेजिमेंट की एक पूर्ण
बटालियन और लद्दाख स्काउट्स की इकाइयां, युद्ध सामग्री के साथ जोजिला दर्रे से
होते हुए सियाचिन की और बढ़ी. लेफ्टिनेंट-कर्नल डी. के. खन्ना की कमांड में सैनिक
इकाइयां पाकिस्तानी रडारों से बचने के लिए लिए कई किलोमीटर बर्फ में पैदल ही चले थे.
सियाचिन पर कब्जे की फाइनल लड़ाई के लिए अप्रैल 13, 1984 को
भारतीय सेना की कुमाऊं रेजिमेंट और भारतीय वायुसेना द्वारा “ऑपरेशन मेघदूत”(कालिदास द्वारा
रचित मेघदूतम् से लिया गया था) चलाया गया था. ऑपरेशन मेघदूत का नेतृत्व लेफ्टिनेंट
जनरल प्रेम नाथ हून ने किया था.
पाकिस्तान को भी भारत के इस ऑपरेशन की खबर मिली
तो उसने भी 25
अप्रैल 1984 को
जवाबी कार्यवाही की.
पाकिस्तान की सेना ने भी 25 अप्रैल 1984 को इस जगह पर
चढ़ने की कोशिश की लेकिन ख़राब मौसम और बिना तैयारी के कारण वापस लौटना पड़ा. लेकिन
अंततः 25
जून, 1987 को
पाकिस्तान ने 21
हजार फुट की ऊँचाई पर क्वैड पोस्ट (Quaid post) नामक पोस्ट बनाने में सफलता प्राप्त कर
ली थी क्योंकि भारत की सेना के पास गोला-बारूद ख़त्म हो गया था इस कारण भारत के
सैनिक पाकिस्तान के सैनिकों को रोकने में नाकामयाब रहे थे.
दोनों देश सियाचिन ग्लेसियर पर ऊंची जगह पर
पहुंचना चाहते थे. इसी जद्दोजहद में “सिया ला” और “बिलफॉन्ड ला” (Sia La and Bilfond La) दर्रों
पर भारत का कब्ज़ा हो
गया जबकि पाकिस्तान, ग्यांग ला (Gyong La) दर्रे पर कब्जा करने में सफल हो गया.
चूंकि भारत की सेना ने यहाँ पर पहले से कब्ज़ा
कर लिया था इसलिए इस ग्लेशियर के ऊपरी भाग पर फिलहाल भारत और निचले भाग
पर पाकिस्तान का कब्जा है. भारत यहाँ पर लाभदायक स्थिति में बैठा है.
इस लड़ाई के बाद दोनों देशों ने एक दूसरे को
हटाने के लिए कई प्रयास किये लेकिन सफलता नहीं मिली.
ज्ञातव्य है कि अगर ये सूट पाकिस्तान सेना को
पहले मिल जाते तो पाकिस्तान की सेना इस जगह पर पहले पहुँच जाती.
वर्ष 2003 में भारत और पाकिस्तान के बीच
युद्धविराम संधि हो गई. उस समय से इस क्षेत्र में फायरिंग और गोलाबारी
होनी बंद हो गई है लेकिन दोनों ओर की सेना तैनात रहती है. सियाचिन में भारत के 10 हजार सैनिक
तैनात हैं और इनके रखरखाव पर प्रतिदिन 5 करोड़ रुपये का खर्च आता है.
सियाचिन में वर्तमान स्थिति?
वर्तमान स्थिति यह है कि भारत की सेना ने सियाचिन
ग्लेशियर के दो तिहाई इलाके पर कब्ज़ा कर रखा है और लड़ाई की दृष्टि से उपयुक्त 2 मुख्य चोटियों
पर कब्ज़ा कर रखा है जिनमें मोटर चलने के लायक दर्रा "खरदुन्गला" भी
शामिल है. पाकिस्तान के कब्जे में गियॉन्ग ला दर्रा है जो कि श्याक और नुबरा नदी
घाटी और भारत की लेह जिले तक पहुंच को नियंत्रित कर सकता है.
कुल मिलाकर स्थिति इस प्रकार है कि पाकिस्तान इस
सियाचिन ग्लेशियर पर ऊपर की तरफ नहीं बढ़ सकता है जबकि भारत नीचे की तरफ नहीं आ
सकता है.
भारत ने इस ग्लेशियर पर "सोनम"
नामक हैलीपेड बनाया
है जो कि समुद्र तल से 21,000 फुट की ऊँचाई पर स्थित होने के कारण दुनिया का सबसे
ऊंचा हैलीपेड है. इसी
हैलीपेड पर हैलीकॉप्टर की मदद से सैनिकों को रसद सामग्री पहुंचाई जाती
है.
12
जून, 2005 को, प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह इस
मुद्दे के शांतिपूर्ण समाधान के लिए ग्लेशियर की यात्रा करने वाले पहले भारतीय
प्रधान मंत्री बने थे. इससे पिछले वर्ष, भारत के राष्ट्रपति अब्दुल कलाम इस
क्षेत्र की यात्रा करने वाले पहले राष्ट्र प्रमुख बने थे.
इस ग्लेशियर पर दोनों देशों ने लगभग 150 निगरानी
चौकियां बना रखी हैं और हर चौकी में लगभग 3,000 सैनिक हैं.एक आश्चर्य की बात यह है कि
इस इलाके में सैनिकों की मौत की मुख्य वजह भारत और पाकिस्तान के सैनिकों की बीच
लड़ाई नही बल्कि यहाँ के मौसम की विपरीत परिस्तिथियाँ हैं. एक अनुमान के अनुसार अब
तक दोनों देशों के 4000 जवानों को यहां अपनी जान गंवानी पड़ी है.
सियाचिन की ठण्ड के बारे में
सियाचिन में सैनिकों की नियुक्ति 18000 से 23000 फीट की ऊँचाई
पर होती है और यहाँ का तापमान माइनस 55 डिग्री तक गिर जाता है क्योंकि इस
क्षेत्र में 22 के
लगभग ग्लेसियर हैं. सियाचिन ग्लेसियर में स्थिति इतनी ज्यादा विकट होती है कि आपके
शरीर को जितनी ऑक्सीजन की जरुरत होती है उसकी केवल 30% आपूर्ति ही इस जगह मिल पाती है.
यहाँ सैनिकों को घुटनों तक बर्फ में घुसकर चलना
पड़ता है. एक पूर्णतः स्वस्थ सैनिक भी कुछ कदम चल पाता है और यदि किसी सैनिक के
दस्तानों, जूतों
में पसीना आ जाता है तो वह कुछ ही सेकेंड में बर्फ में बदल जाता है जिससे अल्प
तपावस्था (hypothermia)
और शीतदंश (frostbite) जैसी बीमारियाँ उसकी जान की दुश्मन बन
जातीं हैं.
इस प्रकार आपने पढ़ा कि सियाचिन ग्लेसियर में
भारत और पाकिस्तान के बीच लड़ाई की मुख्य वजह क्या है और हमारे जाबांज सैनिक कैसी
विषम परिस्तिथियों में चलकर इस इलाके पर कब्ज़ा किया था. अंत में सियाचिन ग्लेसियर
में तैनात सभी जवानों को सभी भारतीयों की ओर से कोटि कोटि नमन. इसलिए अब दोनों
देशों को सोचना चाहिए कि जमीन के टुकड़ों की लड़ाई के लिए दोनों देशों के सैनिकों के
परिवारों को उजड़ने का क्रम जितनी जल्दी रुक जाये उतना अच्छा है.
No comments:
Post a Comment